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महान राजा हर्षवर्धन का इतिहास | king Harshavardhana History in Hindi

महान राजा हर्षवर्धन आज आप इस लेख में महान राजा हर्षवर्धन के बारे में पड़ेगे जो बहुत दानवीर और दयालु राजा थे। उन्होंने उत्तरी भारत का एकीकरण किया और एक विशाल साम्राज्य खड़ा किया।

महान राजा हर्षवर्धन

महान राजा हर्षवर्धन का इतिहास:-

पूरा नाम  -  हर्षवर्धन
जन्म  -  590 ईस्वी
जन्मभूमि  -  थानेश्वर
पिता  -  प्रभाकर वर्धन
माता  -  यशोमती
भाई  -  राज्यवर्धन
बहन  -  राजश्री
संतान  -  वाग्यवर्धन और कल्याणवर्धन
पत्नी  -  दुर्गावती
राजधानी  -  थानेश्वर, कन्नौज
शासन काल  -  605 - 647 ईस्वी
मृत्यु  -  647 ईस्वी


महान सम्राट हर्षवर्धन का जन्म सन् 590 ईस्वी में थानेश्वर में हुआ था। उनके पिता प्रभाकरवर्धन एक महान राजा थे जोकि थानेश्वर पर राज करते थे। हर्षवर्धन की माता का नाम यशोमती था।


प्रभाकरवर्धन बहुत वीर पराक्रमी और योग्य शासक थे। इन्होंने ही हूणों को पराजित किया था। हर्षवर्धन का एक बड़ा भाई भी था जिसका नाम राज्यवर्धन था। राज्यवर्धन ने अपने पिता की मृत्यु के बाद थानेश्वर पर राज किया। इसके अलावा हर्षवर्धन की बहन का नाम राज्यश्री था। इन तीनों भाई-बहनों में बड़ा प्रेम था‌। हर्षवर्धन राज्यवर्धन से 4 साल छोटा था तथा अपनी बहन से लगभग डेढ़ साल बड़ा था। हर्षवर्धन की पिता प्रभाकरवर्धन ने अपने राज्य का विस्तार करने के लिए अपनी बेटी राज्यश्री का विवाह कन्नौज के राजा ग्रहवर्मन के साथ किया था।



प्रभाकरवर्धन की मृत्यु:-


एक बार जब हूणों ने थानेश्वर पर हमला किया तो प्रभाकरवर्धन ने अपने बड़े बेटे राज्यवर्धन को उनसे लड़ने भेजा। इसी बीच प्रभाकरवर्धन बहुत बीमार पड़ गया। जिसके कारण सन् 605 ईस्वी में प्रभाकरवर्धन की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु के बाद यशोमती बहुत दुखी हुई और उसने सती होने का निर्णय लिया। हर्षवर्धन ने अपनी माता यशोमती को बहुत समझाया लेकिन उनकी माता ने उनकी बात नहीं मानी और वो सती हो गई। जब राज्यवर्धन हूणों को हराकर घर लौटा, तो देखता कि उनके पिता का देहांत हो गया और माता सती हो गई।

राज्यवर्धन का देवगुप्त के साथ युद्ध:

राज्यवर्धन का देवगुप्त के साथ युद्ध:-


माता-पिता की मृत्यु के बाद राज्यवर्धन ने सब कुछ छोड़कर सन्यासी बनने का फैसला लिया, तभी उन्हें पता चला कि कन्नौज के राजा ग्रहवर्मन को मालवा के राजा देवगुप्त ने मार दिया है और राज्यश्री को बंदी बना लिया। राज्यवर्धन उसी समय कन्नौज जाते हैं और वहां देवगुप्त और शशांक के साथ युद्ध करते है इस युद्ध में वो देवगुप्त को मार देते हैं। जब शशांक को यह पता चलता है कि देवगुप्त मर चुका है, तो वह राज्यवर्धन के पैरों में गिर कर माफी मांगता हैं और राज्यवर्धन को अपनी बेटी के प्यार के जाल में फंसा कर अपने राज्य ले जाता हैं। वहां वो चलाकी से राज्यवर्धन का वध कर देता है। राज्यवर्धन की मृत्यु के बाद राज्यश्री जंगल में भाग जाती है।



हर्षवर्धन का सिंहासन पर बैठना:-


इन सब घटनाओं के बाद हर्षवर्धन 16 साल की उम्र में सिंहासन पर बैठते हैं। उसके बाद वो सबसे पहले अपनी बहन को ढूंढते हैं। जब हर्षवर्धन अपनी बहन को ढूंढ रहे होते हैं, तो उनकी बहन सती होने जा रही होते है लेकिन हर्षवर्धन उसे रोक लेते हैं। उसके बाद वो उसे कन्नौज की रानी बनाते है। हर्षवर्धन अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए भास्कर वर्मन के साथ शशांक पर हमला करते हैं और शशांक को गौड़ भेज देते है। शशांक की मृत्यु के बाद हर्षवर्धन बंगाल पर भी अपना कब्जा कर लेते है।

6 साल बाद हर्षवर्धन कन्नौज को अपनी नई राजधानी बनाते हैं।



हर्षवर्धन का परिवार:-


हर्षवर्धन की एक पत्नी थी जिसका नाम दुर्गावती था। हर्षवर्धन और दुर्गावती के 2 पुत्र थे- वाग्यवर्धन और कल्याणवर्धन। उन दोनों बेटों की अरुणाश्वा नामक मंत्री ने हत्या कर दी। जिसकी वजह से हर्षवर्धन का कोई वारिस नहीं बचा।



महान हर्षवर्धन का शासन काल:-


महान हर्षवर्धन ने 605 - 647 ईसवी तक उत्तरी भारत में राज किया। हर्षवर्धन अपने शासनकाल में केवल 41 वर्ष राज कर पाए। पंजाब को छोड़कर हर्षवर्धन ने पूरे उत्तरी भारत पर अपना दबदबा बनाया लिया था। उन्होंने अपने शासनकाल में अपने साम्राज्य का विस्तार किया और उसे पूरे उतरी भारत में फैला दिया। उस समय भारत में बहुत तरक्की हुई जिससे कारण भारत आर्थिक रूप से मजबूत बना।

हर्षवर्धन ने एक बहुत बड़ी सेना तैयार की और लगभग 6 साल में वल्लभी(गुजरात), गंजाम(उड़ीसा), बंगाल, मिथिला(बिहार) और कन्नौज(उत्तर प्रदेश) जीतकर उत्तरी भारत पर कब्जा कर लिया।



राज्य का विस्तार:-


हर्षवर्धन अपने राज्य का विस्तार करने के लिए गुजरात के राजा ध्रुबसेन II पर हमला करते हैं। जब ध्रुबसेन II पर हमला होता है, तो वह अपना राज्य छोडकर दूसरे राजा की शरण में चला जाता है। बाद में हर्षवर्धन और ध्रुबसेन II के बीच संधि हो जाती है। उसके बाद हर्षवर्धन पुलकेसिन II पर हमला करते हैं जोकि चालुक्य साम्राज्य का होता हैं। इस युद्ध में पुलकेसिन II जीत जाता हैै। हराने के बाद हर्षवर्धन अपने साम्राज्य में वापस चले जाते हैं।


ह्वेन त्सांग की भारत में यात्रा:-


ह्वेन त्सांग एक चीनी यात्री था, जो भारत में बौद्ध का अध्ययन करने आए था। ह्वेन त्सांग ने नालंदा विश्वविद्यालयव में डेढ़ साल तक पढ़ाई की थी। भारत में आने के बाद वो राजा भास्करवर्मन के पास जाते हैं। जब हर्षवर्धन को यह पता चलता है कि ह्वेन त्सांग भारत आए हैं तो भास्करवर्मन से ह्वेन त्सांग को कन्नौज भेजने के लिए कहते हैं। इसके बाद ह्वेन त्सांग कन्नौज जाते हैं और हर्षवर्धन से मिलते हैं। ह्वेन त्सांग हर्षवर्धन के दरबार में 8 साल तक एक दोस्त की तरह रहते हैं।



दानवीर हर्षवर्धन:-


हर्षवर्धन अपने समय में बहुत दानवीर थे। वो हर 5 वर्षों में प्रयागराज में एक समारोह करते थे। इस समारोह में ब्राह्मण और बौद्ध भिक्षु भी आते थे। समारोह में हर्षवर्धन राज्य का खाजना और जमीन ब्राह्मणों और भिक्षुओं को दान में देते थे। वह इतने दानवीर थे कि एक बार उन्होंने अपने शाही वस्त्रों को भी दान कर दिया था। इसके अलावा उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय में बहुत ज्यादा दान किया था।

हर्षवर्धन ने अपने साम्राज्य में जानवरों को मारने और उनका मीट खाने पर पाबंदी लगा रखी थी। हर्षवर्धन बौद्ध धर्म को बहुत मानते थे लेकिन उन्होंने कभी बौद्ध धर्म नहीं अपनाया।



हर्षवर्धन की सेना:-


ह्वेन त्सांग के मुताबिक हर्षवर्धन की सेना में लगभग 50 हज़ार हाथी, 20 हजार घुड़सवार और 50 हज़ार सैनिक थे। बाद में हाथियों की संख्या बढ़कर 60 हजार और घुड़सवारों की एक लाख तक पहुंच गए।



हर्षवर्धन की काव्य रचना:-


हर्षवर्धन को लिखने का बहुत शौक था इसलिए उन्होंने संस्कृत में कई नाटक और कविताएं भी लिखी है जैसे:- नागानंद, रत्नावली, और प्रियदर्शिका।



हर्षवर्धन की मृत्यु:-


सन् 647 ईस्वी में हर्षवर्धन की मृत्यु हो गई। उसके बाद उनका साम्राज्य धीरे धीरे-धीरे बिखरता चला गया और अंत में पूरी तरह समाप्त हो गया।



हर्षवर्धन के बारे में:-


हर्षवर्धन के बारे में हमें मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्रों, राजतरंगिणी, चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के विवरण और हर्ष एवं बाणभट्ट चरित संस्कृत काव्य ग्रंथ से पता चलता है।



हर्षवर्धन की उपलब्धियां:-


1. हर्षवर्धन ने सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया था।
2. प्रयागराज का प्रसिद्ध कुंभमेला हर्षवर्धन ने शुरू करवाया था। कुंभमेला हर साल भारत में होने वाला एक बहुत बड़ा मेला है, जो हिंदू धर्म प्रचारकों के बीच बहुत प्रसिद्ध है।
3. हर्षवर्धन ने उत्तरी भारत में बिखरे हुए राज्य को जोड़कर एक विशाल साम्राज्य खड़ा किया और शांति कायम की।
4. हर्षवर्धन अपने समय में मंत्रियों और अधिकारियों को वेतन को भूमि अनुदान के रूप में दिया करते थे। अधिकारियों और कर्मचारियों को बड़ी जमीन देने की प्रक्रिया से हर्षकाल में सामंतवाद अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गये था।
5. हर्षवर्धन बहुत महान राजा बने जिसके कारण उन्होंने दूर-दूर तक विद्वानों, कलाकार और धार्मिक आगंतुकों को आकर्षित किया।
6. हर्षवर्धन ने थानेश्वर और कन्नौज राज्यों का एकीकरण किया था।


निष्कर्ष - इस लेख में आपने महान राजा हर्षवर्धन के बारे में पढ़ा। हर्षवर्धन के पिता और भाई की मृत्यु के बाद इन्होंनें अपना राज्य संभाला और उसका विस्तार पूरे उत्तरी भारत में करा।

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