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छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास | Chhatrapati Shivaji Maharaj History in Hindi

 छत्रपति शिवाजी महाराजइस लेख में आप मराठाओं के महान राजा छत्रपति शिवाजी के बारे मे पढेंगे जिन्होंने हमारे भारत देश के लिए बहुत बड़ा योगदान दिया।

छत्रपती शिवाजी महाराज


छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास(Chhatrapati Shivaji Maharaj History)

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म सन् 1936 ईस्वी में शिवनेरी किले में शाहजी भोंसले और जीजाबाई के यहां हुआ। जब शिवाजी छोटे थे तो उनके पिता लंबे समय तक उनसे दूर रहे इसलिए उनकी देखभाल उनकी मां जीजाबाई और दादोजी कोंडदेव ने की थी। दादोजी कोंडदेव ने ही उन्हें शिक्षा दी और उन्हें युद्ध कौशल और नीति शास्त्र के बारे में सिखाया। बचपन में शिवाजी की मां उन्हें हिंदू कहानियां सुनाएं करती थी जिसे सुनकर वह बहुत खुश होते। कुछ सालों बाद 1647 में दादोजी कोंडदेव की मृत्यु हो गई उनका मानना था कि शिवाजी भी अपने पिता की भांति अदिल शाह की सेना में उच्च पद पर होंगे।



छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना


छत्रपति शिवाजी ने सन् 1646 ईस्वी में स्थानीय किसानों के द्वारा अपनी सेना का निर्माण किया। वह इस बात से भली-भांति परिचित थे कि किसी भी राज्य को खड़ा करने के लिए किलो की महत्वता बहुत ज्यादा है। धीरे-धीरे उम्र बढ़ने के साथ वह बहुत अकलमंद हो गए और 15 साल की उम्र में उन्होंने आदिलशाह के अधिकारियों को रिश्वत देकर कई किलो को अपने कब्जे में ले लिया जिसमें तोरणा, चाकण और कोंडाना का किला शामिल है। इसके अलावा भी शिवाजी ने आबाजी सोनदेव की सहायता के द्वारा थाने, कल्याण, भिवंडी के किले मुल्ला अहमद से छिनकर उन पर अधिकार जमा लिया। उनकी बहादुरी के किससे हर जगह चर्चा में आने लगे। जब इस बात का पता आदिलशाह को लगा तो उसके साम्राज्य में हड़कंप मच गया। उसने शिवाजी को रोकने के लिए उसके पिता को गिरफ्तार कर लिया। इस कारण शिवाजी ने 7 वर्षों तक आदिलशाह पर आक्रमण नहीं किया बल्कि शिवाजी ने यह समय अपनी सेना का विस्तार करने में लगाया। धीरे-धीरे उन्होंने एक विशाल घुड़सवार सेना एकत्र कर ली। जिसकी कमान नेताजी पालकर ने संभाल रखी थी और पैदल सेना येसाजी कंक ने।‌ अब शिवाजी के अधीन 40 किले भी आ गए थे।



शिवाजी महाराज का अफज़ल खान के साथ युद्ध


सन् 1659 में बीजापुर की बड़ी साहिबा ने अफजल खान को 10 हज़ार सैनिक के साथ शिवाजी पर आक्रमण करने के लिए कहा। अफजल खान बहुत क्रूर तथा ताकतवर था उसने शिवाजी को फंसाने के लिए कई मंदिरों को तोड़ दिया और बहुत से आम नागरिकों को मार डाला।

वही शिवाजी ने अपनी चतुराई से छापामार पद्धति से युद्ध को चालू रखा और युद्ध के समय वह प्रतापगढ़ किले में रहे जिसके चारों तरफ जंगल था आखिर में अफजल खान ने छत्रपति शिवाजी को मारने की साजिश रची। उसने शिवाजी को मिलने के लिए बुलाया। जब वह मिले तो अफजल खान ने उन्हें जोर से पकड़ लिया लेकिन शिवाजी पहले से तैयार थे और उन्होंने एक चाकू छुपा रखा था। अफजल खान उन से 2 गुना बड़ा था इसके बावजूद उन्होंने उसका पेट फाड़ दिया। इसके आलावा शिवाजी ने प्रतापगढ़ की लड़ाई में अफजल खान की सेना को जोरदार जवाब दिया।



शिवाजी महाराज का रुस्तम ज़मान के साथ युद्ध


अफजल खान की हार से बीजापुर का सुल्तान हैरान था। इस बार उसने रुस्तम ज़मान को शिवाजी से युद्ध के लिए भेजा। 28 दिसंबर 1959 ईस्वी में युद्ध के मैदान में शिवाजी ने रुस्तम ज़मान की सेना पर सामने से आक्रमण किया। धीरे-धीरे रुस्तम ज़मान के सैनिक मरने लगे और वह शर्मिंदा के कारण युद्ध के मैदान से जान बचाकर भाग गया।


शिवाजी का सिद्दी जौहर के साथ युद्ध

शिवाजी महाराज का सिद्दी जौहर के साथ युद्ध


आदिलशाह बहुत परेशान हो गया वह सोचने लगा कि शिवाजी महाराज को कैसे हराए जाए तो उसने सन् 1660 में अपने सेनापति सिद्दी जौहर को शिवाजी पर हमला करने के लिए भेजा। जब सिद्दी जौहर ने हमला किया तो उस समय शिवाजी पन्हाला किले में स्थित है सिद्दी जौहर ने मौके का फायदा उठाकर किले को चारों ओर से घेर लिया।


इस बार शिवाजी ने अपनी चाल चली। उन्होंने जौहर को मिलने के लिए बुलाया और जब सिद्दी जौहर शिवाजी से मिला तो शिवाजी ने पीछे से सैनिक द्वारा आदिलशाह को संदेश भिजवाया कि सिद्दी जौहर उनसे गद्दारी कर रहा है। जिसके कारण आदिलशाह और सिद्दी जौहर के बीच बहुत बड़ा युद्ध छिड़ गया। इस रिथति का फायदा उठाकर शिवाजी ने अपने 5000 सैनिकों को पन्हाला किले से बाहर निकाला। बाजीप्रभु देशपाण्डे ने अपनी सेना के साथ दुश्मन की सेना को उलजाए रखा। जिसके कारण शिवाजी वहां से आराम से बच कर निकल पाए लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण इस युद्ध में बाजीप्रभु देशपाण्डे की मृत्यु हो गई।



शिवाजी महाराज का शाइस्ता खान के साथ युद्ध


बीजापुर की बड़ी बेगम चिंता के मारे परेशान थी। उन्होंने औरंगजेब से शिवाजी को पकड़ने के लिए कहा। औरंगजेब ने शाइस्ता खान को 1 लाख 50 हजार सैनिक के साथ शिवाजी से युद्ध करने के लिए भेजा। शाइस्ता खान की सेना बहुत विशाल थी इसलिए उसने पुणे पर कब्जा कर लिया और शिवाजी के निवास स्थान लाल महल पर अपना डेरा जमाया। इस बार छत्रपति शिवाजी ने चालाकी से बराती के भेस में अपने 400 सिपाहियों के साथ पुणे में प्रवेश किया। रात होते ही उन्होंने शाइस्ता खान पर आक्रमण कर दिया। उसी वक्त शाइस्ता खान खिड़की से कूद कर अपनी जान बचाई लेकिन शिवाजी इतने तेज थे कि उन्होंने उसके तीन उंगलियों को काट दिया।



शिवाजी महाराज का राजा जयसिंह के साथ युद्ध


सन 1664 में शिवाजी ने मुगल व्यवसाय केंद्र पर आक्रमण करके उसको तहस-नहस कर दिया। जब औरंगजेब को यह पता चला तो वह क्रोध से भर गया। उसने राजपूत राजा जयसिंह को डेढ़ लाख सैनिकों के साथ शिवाजी पर आक्रमण करने को कहा। इतनी विशाल सेना होने कारण इस युद्ध में शिवाजी हार गए। औरंगजेब ने शिवाजी को मारने के बजाय उन पर जुर्माना लगा दिया और उन्हें 23 किलो और 4,00,000 रुपये की मुद्रा हर्जाने के रूप में देनी पड़े।


अब छत्रपति शिवाजी को उसके पुत्र संभाजी के साथ आगरा भेज दिया गया और औरंगजेब ने शिवाजी को घर में कैद कर दिया लेकिन शिवाजी रुकने वाले नहीं थी। उन्होंने चतुराई दिखाई और बीमारी का बहाना बनाया। उन्होंने चलाकी से साधु-संतों को तोफे भिजवाए। एक दिन वह खुद और अपने बेटे संभाजी को सामान के डब्बे में छुपा कर बाहर निकल आए। निकलने के बाद उन्होंने लंबा सफर तय किया और वह रायगढ़ पहुंच गए। लेकिन शिवाजी ने हार नहीं मानी और 1670 तक लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने 4 महीनों के अंदर अपने राज्य का बड़ा हिस्सा मुगल से आजाद कर लिया।



शिवाजी महाराज का दाऊद खान और मोहब्बत खान के साथ युद्ध


सन 1671 से 1674 औरंगजेब ने शिवाजी को काबू करने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो पाए औरंगजेब ने अपने दो महान योद्धाओं दाऊद खान और मोहब्बत खान को शिवाजी से लड़ने के लिए भेजा लेकिन शिवाजी महाराज ने उन दोनों को भी बहुत बहादुरी से हराया। इसके अवाला सन् 1672 में आदिलशाह की मृत्यु हो गई।



शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक


6 जून 1674 को गंगा भट्ट ने हिंदू परंपरा के अनुसार शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक किया और वह मराठा के महान राजा बने। शिवाजी की महानता उनकी बहादुरी और युद्ध कौशल तक ही सीमित नहीं थी। वह एक योग्य प्रशासक भी थे। उन्होंने कभी भी किसी नारी का निरादर नहीं किया। इसके अलावा वह युद्ध में हारे दुश्मनों की औरतों को भी सम्मान सहित वापस भिजवा देते थे।


भारत में पहली बार गोरिल्ला युद्ध, किलो का उपयोग और नव सेना का निर्माण शिवाजी ने हीं किया। शिवाजी महाराज ने 4 किलो और 2000 सैनिकों के साथ शुरुआत की थी पर जब उनकी मृत्यु को समय आया तब उनके पास 300 किलो और 1,00,000 सैनिक हो गए थे।



शिवाजी महाराज की मृत्यु


सन 1680 में शिवाजी को तेज बुखार और पेचिश(Dysentery) हो गया इसके कारण 3 अप्रैल 1680 को 52 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई। वहीं औरंगजेब ने सोचा कि शिवाजी की मृत्यु के पश्चात मराठा का वर्चस्व खत्म हो जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शिवाजी के पुत्र संभाजी ने और बाद मे छत्रपति राजाराम ने मराठा शासन को संभाला।

मराठा और औरंगजेब के बीच करीब 25 सालों तक युद्ध हुआ जिसकी वजह से औरंगजेब अपनी मृत्यु के समय तक बर्बाद हो चुका था।


निष्कर्ष - छत्रपति शिवाजी एक महान राजा थे। उन्होंने ही मराठा राज्य की नींव रखी और मुगलों का बहुत बहादुरी के साथ सामना किया तथा दक्षिण भारत में बहुत बड़ा हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया।


इस लेख में आपने छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में पढ़ा। अगर आपको यह लेख पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर जरूर करें।

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