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अग्रसेन की बावली का इतिहास || अग्रसेन की बावली का रहस्य || Agrasen Ki Baoli

अग्रसेन की बावली(agrasen ki baoli) - इस लेख में आप अग्रसेन की बावली के बारे में संक्षेप में पड़ेंगे। अग्रसेन की बावली दिल्ली में स्थित ऐतिहासिक जगह है जो की बहुत ही लोकप्रिय है। बॉलीवुड की फिल्म शूटिंग होने के बाद है यह और भी लोकप्रिय हो गई है जिससे यहां पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है।


अग्रसेन की बावली

अग्रसेन की बावली(agrasen ki baoli)


भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित अग्रसेन की बावली एक ऐसा रहस्यमयी स्थल जहाॅं पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है। इस बावली ने लोगों को अपनी और आकर्षित किया है। जिसके कारण आज यह बहुत लोकप्रिय है। इस बावली को 14 वीं शताब्दी में सूर्यवंशी सम्राट महाराजा अग्रसेन द्वारा बनवाया गया था इसलिए इसे अग्रसेन की बावली कहा जाता है। यह बावली दिल्ली में कनॉट प्लेस के हेैली रोड में स्थित है। यह करीब 60 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा एक सीढ़ी नुमा कुआ है तथा इसमे करीब 105 सीढ़ियां है। प्राचीन जमाने में पानी को एकत्र करने के लिए इस बावली का निर्माण किया गया था।


लाल बलुए पत्थर से बनी इस बावली की वास्तु संबंधी विशेषताएं तुगलक और लोधी काल की तरफ संकेत करती है। इस बावली के बारे में लोगों का विश्वास है कि यह महाभारत काल में बनवाई गई थी बाद में अग्रवाल समाज ने इस बावली का जीर्णोद्धार करवाया।


बॉलीवुड की प्रसिद्ध फिल्म की शूटिंग(Bollywood movies shot in agrasen ki baoli)


इसके ऊपर सन 2012 में भारतीय डाक द्वारा 'अग्रसेन की बावली' पर एक डाक टिकट जारी हुआ। यह बावली भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत भारत सरकार द्वारा संरक्षित है।अनगढ़ तथा गढे पत्थर से बनी यह दिल्ली की बेहतरीन बावली में से एक है। कई सालों पहले यह बावली इतनी लोकप्रिय नहीं थी। बॉलीवुड की प्रसिद्ध फिल्म पीके की शूटिंग होने के बाद यह बावली और भी प्रख्यात हो गयी। यह जंतर मंतर के पास हेली रोड पर स्थित है। किसी समय यहां पर दिल्ली के लोग तैराकी के लिए आया करते थे।


बावली के पश्चिम की ओर एक मस्जिद है। इस मस्जिद के खंभों में कुछ विशेष लक्षण और रंग भरे हैं जो बौद्ध काल की कुछ असाधारण संरचनाओं से मेल खाते हैं। जिसके तीन प्रवेश द्वार है कहा जाता कि अग्रसेन की बावली का निर्माण राजा अग्रसेन द्वारा किया गया था लेकिन इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं है। वहीं भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार के नक्शे के मुताबिक 1868 में इस बावली का निर्माण ब्रिटिश द्वारा करवाया गया था अग्रसेन की बावली को ओजर सेन की बावली के रूप में भी सूचीबद्ध किया गया है।


अग्रसेन की बावली

यह बावली अब भी काफी बेहतर स्थिति में मौजूद है। पहले इस बावली में हजारों सैकड़ों-हजारों चमकादड़ों का वास था अगर आप आज भी इस बावले में नीचे की ओर जाते हैं तो आपको यहां चमकादड़ों का शोर सुनाई दे जाएगा।


अग्रसेन की बावली की भूतिया कहानी(agrasen ki baoli haunted story)


एक बार इस बावली के अंदर जादुई काला पानी भर गया था। जो लोगों को अपनी ओर लुभा कर आत्महत्या करने के लिए विवश करता था। कहा जाता है उस काले पानी में सम्मोहन की शक्ति थी। अब इस बावली में काला पानी तो नहीं है लेकिन यहाँ कुछ आत्माओं ने अपना वास बना लिया है। जब आप बावली के अंदर नीचे के ओर जाते हैं तो आपको अपने कदमों की आवाज सुनाई देती है। कई भूतिया किस्सो की वजह से इस बावली में रात को रुकने पर पाबंदी है।


बहुत से लोगों ये भी कहते हैं कि जब वे बावली के अंदर गए तो उन्हें किसी अदृश्य साये द्वारा पीछा किया जाना महसूस हुआ। जिसकी वजह से वह लोग काफी डर भी गए थे और कई लोगों ने तो यहां पर किसी की उपस्थिति होने का एहसास भी किया है। यहां पर चौकीदार आने वाले पर्यटकों को रात में रुकने नहीं देता क्योंकि यहां रात में अजीबो-गरीब आवाज सुनाई देती है। इसको देश की सबसे भयानक जगहों में भी गिना जाता है।


गर्मी के मौसम में यहाॅं पर स्थानीय लोगों और कॉलेजों के छात्र-छात्राओं का आना जाना लगा रहता है क्योंकि यह बावली शहर की तेज गर्मी से लोगों को राहत दिलाती हैं।

अगर आप कभी अग्रसेन की बावली नहीं गई तो आपको इस ऐतिहासिक स्थल पर जरूर जाना चाहिए क्योंकि यह बावली पर्यटकों के लिए एक बहुत ही शानदार जगह है।

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