प्रागैतिहासिक काल-आज हम इस लेख में प्रागैतिहासिक काल के बारे में पढ़ेंगें। यहाॅं पर हम केवल भारत के प्रागैतिहासिक काल के बारे में पड़ेंगे। भारत में प्रागैतिहासिक काल का समय दुनिया के प्रागैतिहासिक काल से अलग था। इसलिए जब आप इस विषय के बारे में कही और पढ़ेंगें तो शायद आपके कुछ और पढ़ने को मिले।
प्रागैतिहसिक काल || Prehistoric Age
प्रागैतिहासिक काल उस काल को कहते हैं जब मानव अपने शुरुआती चरण में थे। प्रागैतिहासिक काल को 'प्रस्तर युग' भी कहा जाता है। इस काल में मानव ने लिखना शुरू नहीं किया था। क्योंकि इस समय मानव किसी भी लिपि या लेखनकला से अपरिचित थे। इसी कारण हमारे पास इस काल के कोई भी लिखित प्रमाण नहीं है। शुरुआत में मानव ने पत्थर का उपयोग 3.3 मिलीयन साल पहले शुरू किया था। इस काल के विषय में हमें जानकारी प्रस्तर के उपकरणों, मिट्टी के बर्तनों, खिलौनों और औजारों से प्राप्त होती है। प्रागैतिहासिक काल में मानव जंगली जानवरों से सुरक्षित रहने के लिए गुफाओं मे रहते थे। उस समय मानव लिपिहीन होने के कारण चित्रकारी किया करते थे। आज आधुनिक युग में हमें उनके कई शैलचित्र मिले है। जैसे:-भीमबेटका के शैल चित्र। इस काल में मानव कबिलों में रहते थे और शिकार करके अपना जीवनयापन करते थे।
प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में बाँटा गया है।
1. पुरापाषाण काल
2. मध्यपाषाण काल
3. नवपाषाण काल
1) पुरापाषाण काल(paleolithic age) - पुरापाषाण काल 25 लाख ईसा पूर्व से 10 हज़ार ईसा पूर्व तक माना गया है। इस काल को मानव इतिहास की सबसे लंबी अवधि कहा गया है। पुरापाषाण काल में मानव पत्थरों का अलग-अलग तरह से प्रयोग करते थे। धीरे-धीरे समय बीतने के साथ उन्होंने इसमें नवाचार लाया। पुरापाषाण काल में मानव के जीवन का मुख्य स्रोत शिकार करना था। पुरापाषाण काल के मानव घुमंतू आखेटक एवं संग्रह करते थे जो अपने आहार की खोज में लंबी दूरियां तय करते थे। उनको पशु पालने का ज्ञान नहीं था इसलिए वो शिकार करके अपना पेट भरते थे। उस समय लोगों ने आग का आविष्कार तो किया था लेकिन वह इसका प्रयोग करना नहीं जानते थे। सन् 863 ई० में रॉबर्ट ब्रूस फुट ने पुरापाषाण कालीन औजारों की खोज कर भारत में प्रागैतिहासिक विज्ञान की स्थापना की।
पुरापाषाणकाल को तीन भागों में विभाजित किया गया है।
(क) निम्न-पुरापाषाण काल(early paleolithic age) - निम्न-पुरापाषाण काल 20 लाख ईसा पूर्व से 1 लाख ईसा पूर्व तक माना जाता है। इस काल में मानव समूह बनाकर रहते थे। तथा जंगली जानवर का शिकार करके भोजन को संग्रह करते थे। वह गुफाओं में रहते थे ताकि जंगली जानवर से बचा जा सके। उस समय मानव पत्थर(प्रस्तर) से बनी उपकरणों का इस्तेमाल करते थे और उनके कुछ मुख्य उपकरण थे जैसे:- हस्त कुठार, विदारणिया, खंडक आदि। निम्न-पुरापाषाण काल के पत्थर के उपकरण सोहनघाटी जो पाकिस्तान में स्थित है कश्मीर तथा भार रेगिस्तान के जगहों पाए गए हैं। उत्तर प्रदेश में बेलन घाटी, राजस्थान में डिडवान के मरुस्थलीय क्षेत्र, महाराष्ट्र के चिर्की- नेवासा, आंध्र प्रदेश का नागार्जुनकोंडा निम्न-पुरापाषाण काल के उपकरण उपलब्ध कराने वाले कुछ महत्वपूर्ण स्थल है। भोपाल के निकट भीमबेटका की गुफाएं और शैलाश्रय भी निम्न-पुरापाषाण काल को दर्शाते हैं। इस काल के ज्यादातर शिल्प-तथ्य क्वार्टजाइट से बने हैं। ताप्ती, गोदावरी, भीम और कृष्णा नदियों की घाटियों से बड़ी संख्या में निम्न- पुरापाषाण कालीन स्थल पाए गए हैं।
(ख) मध्य-पुरापाषाण(middle paleolithic age) - मध्य-पुरापाषाण काल 1 लाख ईसा पूर्व से 40 हज़ार ईसा पूर्व तक माना जाता है। मध्य-पुरापाषाण काल में आग का उपयोग बड़े पैमाने पर किया जाने लगा। इस काल में उपकरणों का निर्माण पत्थरों की फलकों द्वारा किया जाता था। इसीलिए इस काल को हम फलक संस्कृति भी कहते है। अब मानव ने कई प्रकार के हथियार बनाने शुरू कर दिए थे। जैसे:-फलक, वेधनी, छेदनी और खुरचनी आदि। मध्य-पुरापाषाण काल में होमिनिड निम्न-पुरापाषाण काल के दौरान आबाद क्षेत्रों में व्यापक पैमाने पर बसे रहे। भारत के कुछ हिस्सों में पहली शैलाश्रयों में निवास शुरू हुआ। मध्य-पुरापाषाण काल के शिल्प-तथ्य नर्मदा नदी के तट पर कई जगहों पर और तुंगभद्रा नदी में भी कई जगहों पर पाए गए हैं। मेवाड़ में वागाँव और काडमाली नदियों के किनारे मध्य पुरापाषाण काल के कई स्थल है। इस क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की खुरचनियों, बेधकों और कांटे की खोज की गई है। पूरे भारत में गंगा घाटी, असम, सिक्किम एवं केरल को छोड़कर मध्य पुरापाषाण काल के उपकरण मिलते हैं।
(ग) उत्तर-पुरापाषाण काल(late paleolithic age) - उत्तर-पुरापाषाण काल 40 हज़ार ईसा पूर्व से 10 हज़ार ईसा पूर्व तक माना जाता है।यह काल हिमयुग की अंतिम अवस्था में था। तथा इसी काल में सबसे पहले आधुनिक मानव होमोसेपियंस का उदय हुआ। इस काल में मानव छोटे-छोटे समूह में बट गए और गुफाओं में रहने लगे। भीमबेटका में पाए गए चित्रकारी और नक्काशियों से पता चलता है कि शिकार उनके निर्वाह का मुख्य साधन था।
उत्तर पुरापाषाण काल के शिल्प-तथ्य के मुख्य स्थल हैं - थार क्षेत्र, पश्चिमोत्तर सीमा की संगम गुफाएं और उत्तर पंजाब का पोटवार पठार, दक्षिण भारत, मध्य गुजरात और उत्तरी पश्चिमी काठियावाड़। पत्रियों और तक्षणियों का उद्योग आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में रेनिगुंटा के निकट पाया गया है।
2) मध्यपाषाण काल(mesolithic age) - मध्यपाषाण काल 10 हजार ईसा पूर्व से 7 हजार ईसा पूर्व तक माना गया है। इस काल में हिम युग समाप्त होने के बाद जलवायु में परिवर्तन हुआ और वह बरसाती हो गई जिससे पेड़-पौधे और जीव जंतुओं में बदलाव आया। शिकार करने और उसको तेजी से एकत्रित करने वाले समुदाय भारत में फैलने लगे। अब मानव शिकार करके मछलियाॅं पकड़कर तथा खाद्य सामग्री को एकत्रित कर जीवन निर्वाह करते थे। इस काल में मानव ने पशुओं को पालने शुरू कर दिया था। पशुपालने का साक्ष्य राजस्थान के बागोर तथा मध्य प्रदेश के आजमगढ़ से प्राप्त हुए हैं। मध्य पाषाण काल में मानवों द्वारा एक-दूसरे पर आक्रमण करने के प्रारंभिक साक्ष्य सराय नाहर राय से प्राप्त होते हैं।
छोटे छोटे पत्थर के टुकड़ों से बने उपकरण जिनकी लंबाई 1 से 8 सेंटीमीटर तक होती थी पत्रियों और अति लघु पत्रियों पर बनते थे तथा उनमे दक्षिणी, अर्धचंद्रक, बालचंद्रक, त्रिकोण, नोकदार, समलंब इत्यादि अनेक आकार के होते थे। इस काल मैं मानव हड्डियों और पत्थरों से बने छोटे उपकरणों का प्रयोग करते थे। तीर-कमान और भाले का प्रयोग सबसे पहले इसी काल में हुआ था।
मध्यपाषाण काल के अनेकों स्थल भारत में पाए गए हैं जैसे:- राजस्थान (बागोर, तिलवाड़ा), उत्तर प्रदेश (सराय नाहर राय, मोररहाना पहाड़, लेखहिया), भोपाल (भीमबेटका आदमगढ़), पूवी भारत (उड़ीसा में कोचइ, पश्चिम बंगाल में वीरमानपुर आदि)।
3) नवपाषाण काल(neolithic age) - नवपाषाण काल 7 हज़ार ईसा पूर्व से 2,500 ईसा पूर्व तक माना गया है। नवपाषाण काल जो मध्य पाषाण काल के बाद की और पाषाण काल की अंतिम अवस्था है, मैं भोजन का उत्पादन होना शुरू हो गया था। तथा प्रस्तर के उपकरण उपयोग में लाया जाते थे। हल्के और तीक्ष्ण उपकरणों से भिन्न मूसल, खरल, चक्की जैसे टूटने पीसने वाले भारी औजार के साथ-साथ कुठार और हँसिया जैसे चमकदार उपकरण नवपाषाण काल में प्रयोग में लाए जाने लगे।
इस काल में मानव कृषि और पशुपालन की ओर मुड़ गया था तथा उन्होंने खेती करना शुरू कर दिया था। नवपाषाण काल में मानव अपने आहार की जरूरतों को पूरा करने के लिए कृषि और पशुपालन पर निर्भर थे। मानव पत्थर की कुल्हाड़ीयों का प्रयोग शिकार करने में करता था। नवपाषाण में मानव घर बनाकर एक स्थान पर रहते थे तथा उनके घर गोलाकार आयताकार हुआ करता थे। जिन्हे मिट्टी और सरकंडों द्वारा बनाया जाता था।
सबसे पहले नवपाषाण काल के पत्थरों के उपकरण टोंस नदी घाटी (उत्तर प्रदेश) में खोजें गए। इस काल में मानव गेहूं, चावल, जो, मूंग और मसूर आदि फसलों की खेती करने लगा था। कई प्रकार के मिट्टी के बर्तन(मृदभांड) इस काल की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है। मिट्टी के पहिया का उपयोग तथा आगे चलकर कताई बुनाई और माल निर्माण जैसे शिल्पों का आविष्कार भी नवपाषाण काल को अनूठा बनाता है।
इस काल के सबसे प्राचीन स्थल मेहरगढ़ में है। जहां पुरातत्वविदों को कृषि का प्रथम और स्पष्ट प्रमाण मिला है। नर्मदा घाटी में स्थित हथनोरा में मानव खोपड़ी का जीवाश्म( Fossil) मिला है जो भारत में सबसे प्राचीन है।
नवपाषाण काल के कुछ प्रमुख स्थल इस प्रकार हैं:-
(क) मेहरगढ़ - बलूचिस्तान के बोलन नदी के तट पर मेहरगढ़ में गेहूं, जौ, ढोर, भेड़ और बकरियों पर आधारित कृषि जीवन के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। इस स्थल पर खुदाई 1974 में शुरू की गई और उन से 1980 के दशक तथा उसके बाद भी चलती रही।
(ख) गुमला - गुमला का स्थल एक छोटे एक एकड़ वाले खेमा से शुरू हुआ। शुरुआत में छोटे छोटे पत्थर के टुकड़े, पालतू पशुओं के हड्डियों और बड़े आकार वाले छिछले गड्ढे पकाने भूनने के काम में लाए जाते थे। बाद में बड़े पैमाने पर चाक निर्मित मिट्टी के बर्तन (मृदभांड), छोटे छोटे पत्थरों के औजार, पक्की मिट्टी के कड़े, खेल के मोहरे बनाई जाने लगी।
(ग) रहमानढेरी - रहमानढेरी 20 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर फैला हुआ एक विशाल स्थल है। इसकी दीवारें कीचड़ और कच्ची ईंटों से बनी थी। रहमानढेरी में गेहूं, जौ, मछली और पालतू जानवर भेड़, बकरी आदि का अवशेष मिले हैं। यहां पर शुरुआत से ही मिट्टी के बर्तन काम में लाए जाने लगे।
(घ) कोल्डीहवा - कोल्डीहवा उत्तर प्रदेश की बेलन घाटी में स्थित है। यहाँ चावल की शुरुआती साक्ष्य मिले हैं। कोलडीहवा में चावल की खेती की अवधि लगभग 5500 ईसा पूर्व बताई गई है। इस स्थल में धारवाले औजार, शल्क, नव चन्द्राकार वस्तुओं साथ पॉलिशदार और सान चढ़ा कुठार, सिलेट आदि के साक्ष्य मिलते हैं। भेड़, बकरी और हिरण की हस्तियों से पशुपालन का साक्ष्य मिलता है। तथा मछली की हड्डियों से मछली मारने के साक्ष्य मिलते हैं।
इन स्थलों के अलावा और भी नवपाषाणकालीन स्थल है जैसे:- किलीगुमोहम्मद, बुर्जहोम, महागारा, चिरांद, कुचई, पांडू रजार ढिबी, कनिष्कपुर, अमरी, गुफ्कराल, रानाघुंदई, गोलबई सासान, गुमला।
निष्कर्ष - आपने इस लेख में प्रागैतिहासिक काल के बारे में पढ़ा। आप अनुमान लगा सकते हैं कि प्रागैतिहासिक काल में मानव ने अपना जीवन कितने संघर्षों के साथ बिताया होगा। उन्होंने अलग-अलग औजारों का आविष्कार किया ताकि वह शिकार कर अपना जीवनयापन कर पाए। इन्हीं संघर्षों के कारण आज के मानव का उदय हुआ।
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