महाराणा प्रताप की कहानी - आज आप उस सम्राट के बारे में पढ़ेंगे जो कभी भी अकबर के सामने नहीं झुका। महाराणा प्रताप जिन्होंने अपना पूरा जीवन संघर्षों में बिताया। महाराणा प्रताप ने अकबर के साथ कई युद्ध किए लेकिन अकबर कभी भी उन्हें बंदी नहीं बना पाया।
महाराणा प्रताप की कहानी(Story of Maharana Pratap)
पूरा नाम - महाराणा प्रताप(राणा प्रताप)
बचपन का नाम - कीका
जन्मतिथि - 9 मई 1540
जन्म स्थान - उदयपुर, मेवाड़ कुंभलगढ़ दुर्ग
पिता - महाराणा उदयसिंह
माता - महारानी जयवंता बाई
महाराणा प्रताप की पहली पत्नी - महारानी अजब्दे पुनवार
महाराणा प्रताप के पुत्र - जगमाल, शक्ति सिंह और सागर
वंश- सिसोदिया राजवंश
महाराणा प्रताप की मृत्यु- 29 जनवरी 1597
मेवाड़ो के सम्राट महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 ईस्वी में राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ। इनके पिता का नाम उदयसिंह तथा माता का नाम जयवंता बाई था। इनकी माता पाली के सोनगरा अखेराज की बेटी थी। राणा प्रताप को बचपन में सब 'कीका' कहकर पुकारते थे। राणा प्रताप अपने बचपन का ज्यादातर समय भील समुदाय के साथ बिताते थे। उन्होंने भील समुदाय के साथ ही युद्ध कला को सीखा। बचपन से ही राणा प्रताप बहुत साहसी, वीर और स्वाभिमानी थे। उनके पिता उदयसिंह की 33 संतानें थी, जिसमें से प्रताप सबसे बड़े थे।
राणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के मुताबिक हर साल ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है।
महाराणा प्रताप का परिवार(Family of Maharan Pratap)
महाराणा प्रताप की पहली पत्नी का नाम अजबदे पुनवार था, जिसके दो पुत्र थे- अमर सिंह तथा भगवान सिंह। राणा प्रताप की कुल 11 पत्नियां थी, जिनके 17 पुत्र और 5 पुत्रियां थी। राणा प्रताप की मृत्यु के बाद अमरसिंह ने उनकी राजगद्दी संभाली। राणा प्रताप के पिता राणा उदय सिंह की दूसरी पत्नी धीरबाई जिसे इतिहास में रानी भटियाणी के नाम से भी जाना जाता है। रानी धीरबाई की इच्छा थी कि उनका पुत्र जगमाल राणा मेवाड़ का उत्तराधिकारी बने। इसके अलावा उनके दो बेटे और भी थे- शक्ति सिंह और सागर सिंह। परंतु उदयसिंह और प्रजा दोनों ही महाराणा प्रताप को ही मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे इसलिए प्रताप के तीनों भाई उनसे नफरत करते थे।
राणा प्रताप का कद और शास्त्रों का वजन(Rana Pratap Height and Weapons Weight)
महाराणा प्रताप का कद 7 फीट 5 इंच था। महाराणा प्रताप अपने पास हमेशा दो तलवार रखते थे जिनका वजन 208 किलोग्राम था। उनके भाले का वजन 80 किलो तथा कवच का वजन 72 किलोग्राम था।
राणा प्रताप का राज्याभिषेक(Coronation of Rana Pratap)
महाराणा प्रताप का पहला राज्याभिषेक 28 फरवरी 1572 में गोमुंदा में हुआ। इसके अलावा महाराणा प्रताप का दोबारा राज्याभिषेक किया गया है जोकि 1572 ईसवी में कुंलगढ़ दुर्ग में हुआ। इस राज्य अभिषेक के दौरान जोधपुर के शासक राव चंद्रसैन भी आए थे।
हल्दीघाटी युद्ध से पहले(Before War of Haldighati)
अकबर मेवाड़ को हासिल करना चाहता था इसलिए उसने महाराणा प्रताप से युद्ध करने से पहले कुछ राजदूत उनके पास भेजे थे जिसमें सबसे पहले 1572 इसवी में जलाल खाॅं महाराणा प्रताप के पास गया और उन्हें समझाया लेकिन राणा प्रताप ने उनकी एक बात नहीं मानी। इसके बाद राजा भगवंत दास के पुत्र मानसिंह 1573 ईस्वी में राणा प्रताप को समझाने आए पर राणा प्रताप ने उनकी बात भी नहीं मानी। इसी तरह भगवंत 1573 ईस्वी में तथा राजा टोडरमल 1573 इसी में प्रताप को समझाने आए। राणा प्रताप ने इन सभी को मना कर दिया। इस प्रकार प्रताप ने मुगलो की बात मानने से इनकार किया। जिससे आगे चलकर हल्दीघाटी युद्ध हुआ। हल्दीघाटी युद्ध होने से पहले राणा प्रताप के पिता उदयसिंह अकबर से भयभीत होकर मेवाड़ को छोड़कर अरावली पर्वत पर रहने चले गए थे और उन्होंने उदयपुर को अपनी राजधानी बनाया। युद्ध से पहले कुछ राजपूत अकबर के आगे झुक गए थे जिसके कारण वे राणा प्रताप के दुश्मन बन गए। अकबर ने मानसिंह को अपनी सेना का सेनापति घोषित किया इसके अलावा भगवंत दास को अपने साथ मिला लिया और इन सब ने मिलकर 1576 ईस्वी में राणा प्रताप और राणा उदयसिंह के खिलाफ युद्ध छेड़ा।
हल्दीघाटी का युद्ध (War of Haldighati)
हल्दीघाटी युद्ध 18 जून 1576 इसी में मेवाड़ तथा मुगलों के बीच हुआ यह इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध था। यह युद्ध राजस्थान के गोमुंदा के पास हल्दीघाटी में एक संकरे पहाड़ी दर्रे में हुआ था। महाराणा प्रताप ने 3000 घुड़सवार और 400 धनुर्धारियों को युद्ध मैदान में उतारा। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से एक मुस्लिम सरदार भी था- हकीम खां सूरी। मुगलों की सेना में राजा मानसिंह जिन्होंने 5000-10000 हजार सैनिकों की कमान संभाली थी। यह युद्ध 3 घंटे से भी ज्यादा चला जिसमें महाराणा प्रताप जख्मी हो गए थे। उनके सैनिकों में से कुछ लोगों ने उनकी मदद की। उनकी मदद से वह युद्ध से निकल पाए। बाद में वो जंगल में गए और अपनी ताकत को फिर इकट्ठा किया। इस युद्ध में दोनों की सेनाओं में बहुत से लोग मरे। मुगलों ने गोमुंदा और आसपास के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया लेकिन वे ज्यादा लंबे समय तक कब्जा नहीं कर सके। राणा प्रताप ने फिर उन क्षेत्रो पर दोबारा अधिकार जमा लिया। हल्दीघाटी का युद्ध कई दिनों तक चला। जिसमें 80 हजार मुगलों की सेना थी। और उनका सामना 22 हजार की सेना के साथ राणा प्रताप ने बहादुरी से किया आखिर में अन्न की कमी के कारण महाराणा प्रताप यह युद्ध हार गए। चाहे अकबर हल्दीघाटी का युद्ध जीता हो लेकिन वह महाराणा प्रताप को कभी भी पकड़ नहीं सका। महाराणा प्रताप ने युद्ध के बाद कई दिनों तक जंगल में अपना जीवन-यापन किया और कुछ समय बाद महाराणा प्रताप ने चावंड नाम से एक नया नगर बसाया।
महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक(Maharana Pratap Horse Chetak )
महाराणा प्रताप का एक प्रिय घोड़ा था, जिसका नाम चेतक था। चेतक बहुत वफादार और बहादुर घोड़ा था। हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक का पैर घायल हो गया, जिसके कारण वह ठीक से चल नहीं पा रहा था। जब चेतक ने राणा प्रताप को लेकर एक बड़ी नदी के ऊपर से छलांग मारी तो नदी पार करने के बाद चेतक की मृत्यु हो गई। चेतक एक ऐसा घोड़ा था जिसने घायल होने के बावजूद महाराणा प्रताप का साथ दिया। महाराणा प्रताप चेतक की मृत्यु के बाद बहुत दुखी हुए।
महाराणा प्रताप की मृत्यु(Death of Maharana Pratap)
जब महाराणा प्रताप जंगल में शिकार कर रहे थे तो शिकार के दौरान उन्हें काफी चोट लग गई जिसकी वजह से 19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप का निधन हो गया। महाराणा प्रताप की मृत्यु की खबर सुनकर अकबर को काफी दुख हुआ और वह रो पड़ा।
निष्कर्ष - इस लेख में अपने महाराणा प्रताप के बारे में पढ़ा जो कि एक शूरवीर योद्धा थे और कभी भी अकबर के सामने नहीं झुके। जब वह युद्ध करते थे तो उनकी बहादुरी उनकी आंखों से ही दिखाई देती थी। ऐसे महान योद्धा चाहे मर गए हो लेकिन वह हमारे दिल में हमेशा जिंदा रहेंगे।
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इसके अलावा दिल से बताएं आप महाराणा प्रताप के बारे में क्या सोचते हैं?
2 Comments
Maharana Partap is a great king .
ReplyDeleteYou are right bro🙂.
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