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वैदिक काल | वैदिक संस्कृति | Vedic period

वैदिक कालअगर अब वैदिक काल के बारे में सरल भाषा में पढ़ना चाहते हैं तो लेख के द्वारा आप वैदिक काल के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यहां पर आपको ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल के बारे में पढ़ने को मिलेगा

वैदिक काल


वैदिक काल(Vedic Period)

2000 ईसा पूर्व की शुरुआत में मध्य एशिया में सर्दी काफी बढ़ गई थी। इसके कारण लगभग 1500 ईसा पूर्व में दक्षिण मध्य एशिया के लोग गरम अथवा कम सर्दी वाले प्रदेशों की तलाश में भारतीय उपमहाद्वीप की ओर आगे बढ़े।‌‌ इन लोगो को हम आर्य कहते है। आर्य लोगों को वैदिक सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है। ये लोग संस्कृत का शुरुआती प्रारूप थे। यह सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता के बाद भारत में आई। वैदिक सभ्यता शुरुआत में पश्चिमी प्रदेश जैसे पंजाब में जन्मी और गंगा के पश्चिमी घाट में विकसित हुई। यह जन-समुदाय भारोपीय (Indo-European ) भाषाएं बोलता था। आर्य घुड़सवारी करने वाली एक घुमंतू जनजाति थी। यह लोग अपने साथ बलि परंपरा जैसी कई सांस्कृतिक तौर-तरीकों को लाए। 

आर्य लोगों ने ही हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों की रचना की। ये लोग भारत में कई खेपों में आए। इनके पहले दौर में ऋग्वेद कालीन लोग आते हैं। इन वैदिक लोगों का भारत में पहले से रह रहे दस्यु लोगों से युद्ध होता है। दस्यु लोग वैदिक लोगों के घोर दुश्मन होते हैं। ये लोग आर्यों के आने से पहले के निवासी थे। आर्य लोगों ने इन दस्युओं को हराकर अपना दास बना लिया और इन्हें दस्यु नाम दे दिया। आगे यही जाति को शुद्र जाति मे तब्दील हो गई।


वैदिक काल के लोग सोम पौधे और कई देवी-देवताओं जैसे :- इंद्र (वर्षा के देवता), वरुण (जल के देवता), अग्नि (आग का देवता), पूषन(मवेशियों का देवता) की पूजा किया करते थे।‌ ये लोग पर्यावरण का बहुत ध्यान रखते थे। वैदिक लोग आग का उपयोग जंगलों की सफाई, घरेलू कार्य और यज्ञों में करते थे। इन लोगों के लिए मवेशियों का अत्यधिक उपयोग था इसी कारण वे अपने पशुधन को सुरक्षित रखने के लिए देवी-देवताओं की पूजा करते थे।


वैदिक काल को दो भागों में बांटा गया है:-


1) ऋग्वैदिक काल ( 1500 - 1000 ई०पू०)
2) उत्तर वैदिक काल( 1000 - 600 ई०पू०)



1) ऋग्वैदिक काल:-


आर्य लोग 1500 ईसा पूर्व में इस उपमहाद्वीप में आए थे। उनका यहां के पहले से रह रहे निवासी से सामना हुआ जिन्हे दस्यु कहा जाता है। उन्होंने उनके साथ युद्ध किया और उन्हें अपना दास बना लिया। दस्यु भारत के शुरुआती निवासी जान पड़ते हैं। दस्यु लोग हिंदूकुश को पार करने वाले वह पहले लोग थे जो भारत आए थे। ऋग्वैदिक लोग पशुचरिता करते थे। इन लोगों के लिए गाय सबसे प्रिय पशु था। गाय पशुओं की सबसे उच्चतम श्रेणी में आती थी। ये लोग पशुओं को धन के बराबर मानते थे। गाय से इनको दूध और आहार मिलता था इसके अलावा आर्य लोग घोड़े को भी पालते थे। ऋग्वेद ग्रंथ में घोडे की प्रशंसा बहुत की गई है। इस पशु को कई देवताओं के साथ जोड़ा गया है। इंद्र और उसके साथी मरुत अक्सर युद्ध में घोड़े पर सवार दिखलाए गए।


वैदिक लोग कृषि की जानकारी भी रखते थे। ये लोग जौ की खेती किया करते थे क्योंकि यह बहुत जल्दी पकता था और इससे उगने मे कम बारिश की जरूरत पड़ती थी। इसका उपयोग आहार और चारा दोनों के रूप में होता था।


इस काल के लोग अपनी जीविका लूटमार से करते थे। यह लोग युद्ध में लूटे गए सामान को और उपहार को लोगों में बांट दिया करते थे। लूटे गए समान में पशु, भेड़, बकरी, घोड़े, हथियार तथा दासियां प्रमुख थी।


बाल विवाह जैसी प्रथाएं ऋग्वैदिक काल में नहीं थी। इसके विपरीत शुरुआत में नारियों को उचित सम्मान दिया जाता था क्योंकि उनकी समाज में बहुत ज्यादा भूमिका थी लेकिन आगे चलकर पुरुषों को ज्यादा अधिकार दिया जाने लगा।


ऋग्वैदिक काल में पुरोहितों का महत्व:-


ऋग्वैदिक काल में पुरोहित पदाधिकारी के पद पर थे। इस काल के दो प्रसिद्ध गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र से हम अच्छी तरह परिचित हैं। यह दो पुरोहित जनजाति सरदार को युद्ध के लिए प्रेरित करते थे। वे सरदारों की बड़ी प्रशंसा करते थे और बदले में उनसे वस्त्र और दासिया पाते थे। इस काल में लोग देवता को प्रसन्न करने के लिए बलि चढ़ाया करते थे ताकि उन्हें उनकी इच्छा के अनुसार पशु, घोड़े और पुत्र प्राप्त हो।


ऋग्वैदिक काल में धार्मिक मान्यता:-


शुरुआत में वैदिक लोग वर्षा, सूरज, चांद के प्रकट होने और नदियों पर्वतों की उपस्थिति को बताने में सक्षम नहीं थे। इसी कारण से इन लोगों ने इन कुदरती शक्तियों को मनुष्य का रूप दे दिया। उन्होंने इनमें मनुष्य अथवा पशुओं के गुण को स्थापित कर दिया। इंद्र जोकि वर्षा के देवता हैं उस काल में लोगों में काफी लोकप्रिय थे। इनकी चर्चा हमें वेदों में कई बार मिलती है। दूसरे देवता अग्नि को माना गया था क्योकि जंगल जलाने और खाना पकाने जैसे कार्यों में अग्नि का महत्वपूर्ण योगदान था। इसके अलावा आग का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों में भी काफी किया जाता था।


उस काल में वरुण देवता भी बहुत महान थे वह इंद्र के साथी है। वरुण पानी का मनुष्य रूप है। ऋग्वेद में कुछ और देवताओं का भी वर्णन मिलता है जैसे मरुत पवन के देवता थे। इस काल में जनजातीय लोग देवताओं की पूजा अपने जीवन के कष्टों को दूर करने के लिए किया करते थे। इस प्रकार ऋग्वेद में बड़ी संख्या में देवी-देवताओं का उल्लेख मिलता है। यह सभी किसी-न-किसी रूप में प्राकृतिक की शक्तियों को दर्शाते है।


उत्तर वैदिक काल

1) उत्तर-वैदिक काल(later Vedic period):-


उत्तर वैदिक काल भारत के मध्य गंगा घाटी और उससे आगे विकसित हुआ। इस काल में जनपदों का उद्भव होना शुरू हो गया था। छोटे-छोटे जनपदों से मिलकर महाजनपदों का निर्माण हुआ। उत्तर वैदिक काल में 16 महाजनपद का उद्भव हुआ।

1) अंग
2) अश्मक
3) अवंती
4) चेदि
5) गांधार
6) काशी
7) काम्बोज
8) कोशल
9) कुरु
10) मगध
11) मल्ल
12) मत्स्य
13) पांचाल
14) सुरसेन
15) वज्जि
16) वत्स


इसी काल में आर्य और अनार्य का अभ्युदय हुआ तथा भारत वंश और पुरुवंश दो मुख्य जातियां अपस में मिल गई। इस तरह एक नई जाति कुरुवंश का निर्माण हुआ जो पांचालों से मिलकर एक मजबूत जनजाति समूह बन गया। करुओं ने धीरे-धीरे अपना प्रभुत्व बढ़ाया और दिल्ली तथा गंगा के ऊपरी मैदानों पर अपना अधिकार जमा लिया और इसे कुरुक्षेत्र अथवा कुरुओं की भूमि कहा।


उत्तर वैदिक काल में धातु का उपयोग:-


800 ईसा पूर्व उत्तर प्रदेश में लोहे के हथियार जैस वाणाग्र तथा बरछी आमतौर पर प्रयोग में लाए जाने लगे। इन हथियारों ने कुरुओ और पांचलो को उस क्षेत्र के अन्य क्षेत्रों पर प्रभुत्व स्थापित करने में मदद की। इनका उपयोग जंगलों को साफ करने में भी किया जाता था। इसके अलावा कृषि काम में भी लोहे का उपयोग होता था।


उत्तर वैदिक काल में धातु का प्रयोग प्रचुर मात्रा में होता था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में बहुत बड़ी संख्या में तांबे के भंडार और तांबे के औजारों का ढेर पाए गए हैं। इससे जाहिर होता है कि वैदिक लोग तांबे का प्रयोग बहुत ज्यादा करते थे।


उत्तर वैदिक काल में लोग जौ, गेहूं, दाले और चावल भी उपजाया करते थे। विभिन्न प्रकार की फसलों की खेती के कारण वे अपना जीवन निर्वाह करते थे।


उत्तर-वैदिक काल में पुरोहितों का महत्व:-


उत्तर वैदिक काल में ब्राह्मणों और सरदारों का वर्चस्व बढ़ गया। ब्राह्मणों के शक्तिशाली वर्ग ने आम समुदायों पर वित्तीय और प्रशासनिक नियंत्रण कायम कर लिया और उनके लिए जटिल अनुष्ठानों का तंत्र-मंत्र विकसित किया। इस काल में किसानों को बहुत पीड़ित किया जाता है। वर्ण व्यवस्था का उद्भव उत्तर-वैदिक काल में ही हुआ। इस काल में समाज चार वर्ण समूह में बट गया। जिसमें ब्राह्मण सबसे पहले स्थान पर आते हैं, दूसरे स्थान पर क्षेत्रीय, तीसरे स्थान पर वैश्य और चौथे स्थान पर शुद्र आते हैं। इससे जाहिर होता है कि ब्राह्मण सभी वर्गों पर हावी हो गए थे। ब्राह्मण ने बहुत सारे कर्मकांड और अनुष्ठानों का आविष्कार किया। जिसके कारण वे वैश्य तथा शूद्रो पर शासन कर पाए। यह कई राजकीय समारोह और अनुष्ठानों में भारी मात्रा में उपहार प्राप्त करते थे जिनमें पशु, गाय, घोड़े दासिया और अनाज शामिल है। इस प्रकार ब्राह्मणों ने अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर लिया।


क्षत्रिय लोग राजा हुआ करते थे। ये युद्ध में जाकर लड़ाई करते थे। इसके अलावा वैश्य समुदाय कृषि, पशुपालन और सीमित अंश की व्यापारिक गतिविधि कार्य करते थे। उस समय शुद्रो का इतना महत्व नहीं था वे वैश्य की उत्पादक कार्यों में सहायता करते थे। तथा घरेलू नौकर के रूप में ब्राह्मणों और क्षत्रियों की सेवा करते थे।


उत्तर-वैदिक काल मे धर्मिक मान्यता:-


उत्तर वैदिक काल में बहुत बड़ी संख्या में अनुष्ठानों वाली यज्ञों का आविष्कार हो गया था और उस समय इसका प्रचलन बहुत ज्यादा बड़ गया था। ब्राह्मणों ने कई रीति-रिवाजो और कर्मकांडो का निर्माण लोगों से धन को प्राप्त करने के लिए किया। उत्तर वैदिक काल में पुराने देवता इंद्र और अग्नि का महत्व कम हो गया। अब एक नए देवता ब्रह्मा को इस सृष्टि के रूप में सबसे ऊंचे स्थान पर बैठा दिया गया। इसके अलावा विष्णु को संरक्षक देवता बना दिया गया। इस काल में पशुओं की हत्या बड़े पैमाने पर की जाने लगी जिससे पशुधन की बहुत बर्बादी हुई।


कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न:-


1) वेद क्या हैं?

वेद हिन्दुओं के सबसे प्राचीनतम ग्रंथ है। वेदों को इस संसार के सबसे प्राचीन साहित्य माना गया है। वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान' होता है। इस तरह यह वेद ज्ञान का भंडार है। शुरुआत में वेदों का संचार जन-श्रुति (सुनने) के माध्य से हुआ। वेद तो बहुत बाद में लिखे गए। वेदों में देवातओं की स्तुति (प्रशंसा), जटिल अनुष्ठान और तंत्र-मंत्र का वर्णन मिलता है।


2) वेद कितने है?


वेदों को चार भागों में बांटा गया है:-


) ऋग्वेद - ऋग्वेद भारत मे मिलने वाला सबसे प्राचीनतम ग्रंथ है। इस वेद मे अलग-अलग देवताओं की स्तुति (प्रशंसा) की गयी है। जिससे पता चलता है कि शुरुआत से ही वैदिक लोग देवी-देवताओं को मानते थे। वैदिक काल में लोग इंद्र, अग्नि, वरुण, मरुत और सूर्य देवताओं की प्रार्थना किया करते थे। इन देवताओं का ऋग्वेद में विस्तार से वर्णन दिया हुआ है।


) यजुर्वेद - यजुर्वेद हिंदू धर्म का एक प्राचीन और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह वेद चार वेदों में से एक है। इस वेद में अनेक तरह के अनुष्ठानों का वर्णन मिलता है। इस वेद की रचना कुरक्षेत्र के प्रदेश में हुई थी।


) सामवेद - सामवेद चारों वेदों में से एक है और यह आकार की दृष्टि से सबसे छोटा है छोटा होने के बावजूद सामवेद में सभी वेदों का सार रूप है सामवेद संगीत धुनो पर आधारित वैदिक लोगों की सबसे पुरानी काव्य-कृति है।


)अथर्ववेद - अथर्ववेद सभी वेदों में सबसे अंतिम वेद है और ये वेदो की श्रेणी में चौथे स्थान पर आता है। इस वेद में देवताओं की स्तुति तथा बिमरियों से बचने के लिए तंत्र-मंत्र दिए हुए हैं।


3) वेदांग की रचना क्यों की गई और वेदांग कितने हैं ?


वेदों को समझने के लिए 600 से 200 ईसा पूर्व के बीच वेदांग साहित्य की रचना की गई। वेदांग साहित्य संख्या में छह हैं:-


) शिक्षा
) कल्प
) व्याकरण
) निरुक्त
) छंद
) ज्योतिष


4)रामायण और महाभारत की रचना कब हुई?


रामायण के कोई ऐतिहासिक सबूत तो नहीं मिले हैं पर कुछ भारतीय के अनुसार रामायण की रचना 600 ईसा पूर्व से पहले की गई। इस काव्य ग्रंथ को महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचा गया। इसका अलावा महाभारत की रचना 400 ईसा पूर्व के बाद हुई। जिसको वेदव्यास द्वारा रचा गया।


निष्कर्ष - ऋग्वैदिक काल के बारे में अच्छी तरह पढ़ने के बाद हमें पता चलता है कि उस काल में लोग अपने पशु और धन के लिए देवी देवताओं की पूजा क्या करते थे। इन लोगों ने प्राकृतिक शक्तियों को मानवीय रूप भी दे रखा था। उत्तर वैदिक काल में ब्राह्मणों का प्रभुत्व बढ़ता नजर आया है। और जिसके कारण वे पूरे जन समुदाय पर हावी हो गये।


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2 Comments

  1. Bohot jada achha lga sun kr samjh mai aata h ki ye log kitna Geer gye the apne ap ko Uppar dikhane ke leye

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